Life Cycle of stars- here you will get all the information about stars like its formation, life, how stars die and much more in Hindi language
जब तारे मरते है तो हम बनते है।
जब हम रात को आसमान में देखते है। तो उन अनगिनत तारो के बीच अपने पूर्वजो व प्रियजनों को खोजते है। क्युकी हमे लगता लगता है की जो लोग मर जाते है वो तारो का रूप ले लेते है। जबकि सचाई इससे बिलकुल उलटी है। सच तो यह है की जब तारे मरते है तो हम बनते है। कैसे यह हम जानेंगे पर उससे पहले तारो के जीवन के बारे में जानते है।
तारो का जीवन
अंतरिक्ष में गैस के विशाल बदल मौजूत होते है। जो काफी विशाल होते है कई सौ प्रकाशवर्ष जितने दायरे में फैले हुए , जिन्हे MOLECULAR CLOUDS कहा जाता है। जो मुख्यतः HYDROGEN से बना हुआ होता है।इन्हे मॉलिक्यूलर क्लाउड कहा जाता है क्युकी इस बदल का तापमान बेहद कम होता है 10 से 20 K जितना। इतने कम वजह से इसमें मौजूद HYDROGEN मोलेक्युल्स के रूप में मौजजूद होते है। सामान्य परिस्थितियों में इस मॉलिक्यूलर क्लाउड की सघनता हर एक बिंदु पर समान होती है। जिसकी वजह से इस बदल में मौजूद हर एक कण पर हर दिशा से बराबर मात्रा में गरूत्व का बल लगता है। और कणो के इस विशाल सिस्टम मॉलिक्यूलर क्लाउड में एक संतुलन बना रहता है।पर यदि कोई चीज मॉलिक्यूलर क्लाउड के संतुलन को बिगाड़ता है तो कुछ कमाल होता है। क्या कमाल होता है इससे पहले हम यह जानते है की इस गरूत्व के संतुलन में गड़बड़ी कैसे उत्पन्न होती है। तो इसके कई कारण हो सकते है। जैसे की , जब कोई Gamma Ray Burst इस बादल से गुजरता है तो वे जिस जगह पर वे बदल को छूता है उस जगह के गैस के कण गर्म हो जाते है जिसकी वजह से वे और फैल जाते है और वहा पर बाकि के जगह के मुकाबले काम घनत्त्व क्षेत्र का निर्माण होता है। जिसकी वजह से वे दूसरे ज्यादा सघन हिस्सों की तरफ गुरूत्व की वजह से खींचे चले जाते है और जहा वे जाते है उस जगह की सघनता और बढ़ जाती है फिर वे और बाकि के आसपास के कणो को बे अपने और आकर्षित करते है। और मॉलिक्यूलर क्लाउड का संतुलन बिगड़ जाता है। मॉलिक्यूलर क्लाउड में असंतुलन और भी दूसरी वजहों से आ सकता है जैसे गरूत्व तरंगे supernova shock-wave व galactic टकराव वगेरा वगेरा। पर कारण कुछ भी हो मगर इस असंतुलन के कारण मॉलिक्यूलर क्लाउड के ग्रुत्वकर्षणीय संतुलन में गड़बड़ी उत्पन्न होती है और फिर वे छोटे छोटे ढेरो में बटटा जाता है। जो की काफी सघन होते है। धीरे धीरे इन ढेरो के अन्दर एक सघन केंद्र का निर्माण होता जाता है। जैसे जैसे यह सघन केंद्र अपने आसपास की गैसों को और ज्यादा खींचने लगता है इसक्का द्रव्यमान बढ़ता जाता है। द्रव्यमान में इस बढ़ोती के कारन इसके ऊपर गरूत्व का प्रभाव और अधिक बढ़ता जाता है और फिर वे धीरे-धीरे एक गोले का आकर लेने लगता है। धुल और गैस के कणो के बीच घर्सण के कारन यह गोला चमकने लगता है।
और अब यह गोला एक Protostar का रूप ले चूका होता है। प्रोटोस्टार किसी तारे का शुरुआती स्वरुप होता है। अभी तक यह तारा नहीं बना होता है क्युकी यह गोला तारा तब बनता है जब इसके अन्दर स्थिर nuclear fusion की प्रक्रिआ चल रही हो। क्युकी किसी protostar को अपनी चमक nuclear -fusion के कारण नहीं बल्कि गैस के कणो के बीच के घर्षण के कारण मिलती है तो इसे तारा नहीं कहा जा सकता। यदि इस proto star के इर्दगिर्द और अधिक गैस मौजूद हो तो वे उसे भी अपने अन्दर खींचने लगता है और धीरे धीरे जब इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 0.08 जितना पहोच जाता है तो इसका केंद्र बेहद घाना हो जाता है और इसके केंद्र के अन्दर गरूत्व के दवाब और घर्षण के कारन इतनी ज्यादा गर्मी हो जाती है की इसमें नुक्लेअर फ्यूज़न सुरु हो जाता है और यह proto - star किसी main sequence star या तारे में बदल जाता है। ( main sequence star उस तारे को कहते है जिसमे स्थिर nuclear fusion प्रक्रिया चल रही हो। )अब तारे का केंद्र गरूत्व की वजह से और नहीं ढहता यदि इसके आस-पास और ज्यादा गैस सामग्री मौजूद होती है तो वे इसका आकर बढ़ने लगती है पर NUCLEAR FUSION की वजह से उत्पन्न बाहरी दबाव तारे को और ढहने से रोकता है। तो इस तरह किसी तारे का जन्म होता है। हमारे सूर्य का जनम भी इसी प्रक्रिया से हुआ था। क्युकी मॉलिक्यूलर क्लाउड बेहद विशाल होता है। और इसमें बहोत सरे अति घनत्व वाले क्षेत्रो का निर्माण होता है इस लिए एक साथ कई सौ तारे जन्म लेते है। कुछ एक दूसरे के इतने नजदीक वे एक चक्कर लगाने लागले है। और बाइनरी सिस्टम बना लेते है। हमारे ब्रह्माण्ड में ज्यादातर तारे ऐसे बाइनरी तारे ही है। और कुछ तारे किसी दूसरे तारे के काफी दूर जनम लेते है इसलिए वे अकेले ही रहते है। धीरे धीरे वो तारे जो एक दूसरे से किसी भी प्रकार से गरूत्व के माध्यम से नहीं जुड़े होते वे एक दूसरे से दूर हो जाते है।
तारे की मौत
तारे मुख्यतः हाइड्रोजन और हीलियम से ही बने होते है। तारे को अपनी ऊर्जा हाइड्रोजन के फ्यूज़न से मिलती है। जब तक तारा हाइड्रोजन फ्यूज़न करता है तब तक वे इतनी ऊर्जा उत्पन्न क्र पता है की वे स्वयम को गरूत्व के कारण दबाव से खुद मे ढहाने से बचा सके। पर वक्त गुजरने के साथ तारा धीरे धीरे अपना सारा ह्य्द्रोजनं इस्तेमाल कर चूका होता है और उसके पास अब और हाइड्रोजन नहीं बचता फिर वे फ्यूज़न से बने भरी तत्वों का फ्यूज़न करने लगता है जैसे की हीलियम जब हीलियम भी ख़तम हो जाता है फिर वे और भी भरी तत्वों का फ्यूज़न सुरु केर देता है। परन्तु इसप्रक्रिया से उसे हाइड्रोजन के फ्यूज़न जितनी ऊर्जा नहीं मिल पति। और ज्यादातर तारो का तो आकर इतना छूटा होता है की उनके केंद्र में इतनी ज्यादा गर्मी और दबाव नहीं होती की वे कार्बन या उससे भरी किसी तत्त्व का फ्यूज़न केर सके। और इसकी वजह से उनके अन्दर फ्यूज़न बंद हो जाता है। यदि कोई तारा बेहद विशाल होता है तो वे और भरी तत्वों का भी फ्यूज़न कर सकता है। परन्तु किसी तारे के केंद्र में इतना तापमान नहीं बन पता की वे लोहे का फ्यूज़न केर सके। इसलिए बड़े से बड़े तारे में लोहा बनाने के बाद नुक्लेरा फ्यूज़न बंद हो जाता है भले ही तारे को बनाने में गरूत्व का एक बड़ा योगदान होता है। पर किसी तारे का वजूद NUCLEAR FUSION द्वारा उत्पन्न चरम तापमान के कारण बाहरी दिशा में गरूत्व के विपरीत बल और गरूत्व द्वारा अन्दर के और दबाव के बीच के संतुलन पर ही निर्भर करता है। जब तक तारे के नुक्लेअर फ्यूज़न सुचालु तरीके से चलता रहता है तब तक यह संतुलन बना रहता है। नुक्लेरा फ्यूज़न बंद होने के कारण गुरूत्व को संतुलित करने वाला कोई बल नहीं रहता और तारे की मौत होने लगती है।
किसी तारे का जीवन कितना होगा और उसकी मौत कैसी होगी ये इस बात पैर निर्भर करता है की उस तारे का द्रव्यमान कितना है। जहा कोई बेहद भरी तारा सिर्फ कुछ लाख साल ही जीता है वही सूर्य जैसे माध्यम तारे अरबो वर्षो तक जीते है। और उससे भी छोटे तारे तो कई सौ अरब वर्षो तक जीते है। और यही नहीं हर तारे की मौत भी एक जैसी नहीं होती जहा सूर्य जैसे तारे की मौत सांत होती है। वही बेहद विशाल तारे एक भयानक विस्फोट के साथ दम तोड़ते है।
जब कोई छोटा तारा अपना इंन्धन खत्म केर चूका होता है तो इसके परिणाम स्वरुप गरूत्व तारे को और ज्यादा दबाने लगता है और तारे के केंद्र और ज्यादा ढहने लगता है। वे तब-तक ढहता जाता है जब तक तारे का ELECTRON DEGENERACY PRESSURE ग्रुत्ववा वे विपरीत दिशा में सहारा नहीं मिल जाता। ये ELECTRON DEGENERACY PRESSURE क्या होता है इसे संक्षिप्त में समझाए तो यह PAULI के EXCLUSION सिदद्धतं के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होता है जो की यह कहता है की कोई भी दो एक जैसे जैसेइलेक्ट्रॉन्स एक ही स्थान पैर एक साथ नहीं रह सकते। क्युकी गरूत्व का दबाव उन्हें मजबूर करने लगता है की वे एक साथ आए तो वे इसका बिरोध करते है जिसकी वजह से गरूत्व के विपरीत के सहारा मिलता है और तारे का केंद्र नहीं ढ़हता । अब इस पड़ाव के बाद तारा तारा नहीं रह जाता बस उसका अवशेष बचता है जिसे WHITE DWARF या सफेद बौना कहते है।
मगर हर तारे का आंत सफेद बौने के रूप में नहीं होता यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 1.44 गुना से अधिक हो तो यह ELECTRON DEGENERACY PRESSURE भी गरूत्व के दबाव को नहीं रोक पता और तारे का केंद्र और अधिक ढ़हने लगता है वे इतना ढह जाता है की उसके अन्दर के सरे परमाणु भी टूट जाते है और तारा न्यूट्रॉन स्टार में तकदिल हो जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बेहद ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न होती है। सुपरनोवा विस्फोट के रूप में बाहार निकलती है। यदि कोई तारा और भी अधिक भारी हो और यदि उसका भार सूर्य के भार से 3 गुना से भी अधिक हो तो वे तारा और ज्यादा ढ़हने लगता है और एक धमाके के साथ दम तोड़ता हुआ BLACK HOLE बन जाता है। यह बिस्फोट सुपरनोवा से भी ज्यादा ताकतवर होता है और इसलिए इसे HYPERNOVA कहा जाता है। कोई भी तत्त्व जो लोहे से ज्यादा भरी होता है वह नुक्लेअर फ्यूज़न से नहीं बन सकता वे सभी तत्त्व SUPERNOVA या HYPERNOVA विस्फोट के दौरान ही बनते है। सोना चंडी कॉपर जैसे जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण तत्त्व सुपरनोवा विस्फोट के दौरान ही बनते है। और तारे द्वारा बनाये गए तत्त्व इस कारण अंतरिक्ष में फैल जाते है।