Mercury: the Sun's closest son
रात मे आसमान तारों से जगमगा उठता है। सिर्फ हमारी अपनी galaxy 'आकाश गंगा' मे ही अरबों तारे है। और इस ब्रह्माण्ड मे ऐसी खरबों galaxies है। जिनमे अनगिनत तारे है । इन्ही अनगिनत तारों मे से एक है हमारा सूर्य । यह तारे भाँति-भाँति के होते है इनमें से कुछ सूर्य जैसे है; कुछ इससे काफी छोटे जैसे proxima centurai और कुछ इतने बड़े की उनमें हजारों सूर्य समा जाए जैसे Betelguese. तारों और galaxies के सामने हमारे solar system के planets धूल के कणों की भाँति प्रतीत होते है। जो सूर्य की किरणों के बीच चमक उठते है। बिलकुल कुछ उसी तरह जिस तरह खिड़की से आ रही light के कारण हवा मे मौजूद धूल कण चमक उठते है।
सामान्यतः देखने पर ऐसा प्रतीत होता है की यह ग्रह अनंत काल से यू ही बिन बदले स्थिरता से सूर्य का चक्कर लगा रहे है। लेकिन असल मे यह हमेशा से यू ही नही थे । इनका भी जन्म हुआ था , इनका जीवन भी अनदेखी पर अनोखी कहानियो से भरा है। इनका जन्म आज से 4 अरब वर्ष पहले सूर्य के बनने के बाद बचे धूल और gas की सामग्री से हुआ था जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहा था। चार अरब साल से भी ज्यादा के इस समय काल मे इन धूल कणों की कहानी है । एक अद्भुत कहानी, दुनियाँओ के बनने और उनके मीटने की कहानी । ग्रह जो बन कर मिटे है और मिटकर बने है। जिनकी किस्मत जितना आप सोच नही सकते उससे भी ज्यादा एक दूसरे से जुड़ी हुई है। आज हम इनकी इस कहानी को जानते है क्यूकी पिछले कुछ दशकों मे हमारे सौर्यमण्डल के सभी आठ ग्रहों तक space-craft भेजे गए है । जो वहा से धरती तक उनकी कहानियाँ भेज रहे है ।
सूरज के बनने के कुछ करोड़ साल बाद तक उसके इस सौर साम्राज्य मे कोई ग्रह नही थे जो उसकी ताकत के आगे झुक कर उसकी परिक्रमा करते , सिर्फ धूल और gas के बादल थे ; जो सूर्य के बन जाने के बाद बचा हुआ मलबा था। लाखों-करोड़ों साल के बाद धूल के कण आपस मे जुड़ने लगे जिससे पहली चट्टानें बनी । फिर gravity इन चट्टानों के एक साथ जोड़ कर इन्हे ग्रहों का रूप देने लगती है। इन्ही चट्टानों वाले ग्रहों से आगे चल कर सूर्य के चार सबसे क़रीबी ग्रह बनते है । इनमें से सूर्य के सबसे करीब है mercury, जो उसकी धधकती आग को सहता है। फिर बारी आती है venus की जिसका वायुमंडल बहुत घना है। और venus की सबसे क़रीबी पड़ोसी ग्रह है धरती और सबसे दूर है मंगल या mars एक ठंडी और बेजान दुनिया। यही चार हमारे सौर्यमंडल के चार पथरीले या terrestrial planets है।
इन चारों मे से एक अनोखा है हमारी धरती। इसकी आवाज़ सुनिए चार अरब साल से लगातार कुदरती तौर पर विकसित होने के बाद जीवन से भरा एक ग्रह ऐसा दिखता है। हमारे solar system मे न किसी planet की आवाज़ ऐसी है और न ही कोई ऐसा दिखता है। जो काफी दिलचस्प है। क्यूकी, अगर आप ध्यान से सोचे तो आप को मालूम पड़ेगा की सौर्यमण्डल के सभी planets और moons लगभग एक जैसी ही चीजों से बने है। वो चीजें जो सूर्य के बनने के बाद के उस बादल रूपी मलबे मे मौजूद थी। इसलिए यह एक बहुत ही हैरान कर देने वाली बात है की एक वीरान सौर्यमण्डल मे पृथ्वी एकलौता जीता जागता ग्रह क्यूँ है? तो आखिर वो क्या चीजें है जो हमारे इस ग्रह को ऐसा बनाते है? क्या यह बस किस्मत या इत्तेफ़ाक से ऐसा है? या कोई और बात भी है? यह सब आवश्यक प्रश्न है। क्यूकी, ज्ञात ब्रह्माण्ड मे धरती एकलौती ऐसी जगह है जहा इस ब्रह्माण्ड की सबसे अनोखी और जटिल चीज पाई जाती है। जो इस ब्रह्माण्ड को अपने अस्तित्व का आभश कराती है जो इसे एक मायने देती है यह है 'जीवन'। हमारे सौर्यमण्डल मे और शायद इससे हजारों प्रकाश वर्ष आगे भी केवल धरती ही ऐसी एक अनोखी दुनिया है। धरती मे वाकई कुछ खास ख़ूबियाँ है ; इसका आकार बिलकुल सही है और यह सूरज से बिलकुल सही दूरी पर स्थित है जिससे यह अपने atmosphere को बनाए रख सका और जो अरबों सालों से जीवन के लिए अनिवार्य पानी के महासागरो को सुरक्षित रखता आया है। लेकिन जब हमने धरती से परे सौरमण्डल के दूसरे ग्रहों की खोजबीन की तो हमने पाया की धरती की यह खशियत इतनी भी खास नही है; हमने पाया की सौर्यमण्डल के सभी पथरीले ग्रहों पर कभी न कभी धरती जैसे हालत थे। इनमें शायद धरती ही इतनी खुसकिसमत की वे जीवन के अनुकूल अपने इन हालातों को बनाए रखने मे कामयाब हुई। आखिर इन दूसरे पथरीले ग्रहों पर ऐसा क्या हुआ होगा? इन सभी भी अपनी एक कहानी है ।
Mercury: यह एक छोटी सी बंजर दुनिया है। किसी और ग्रह के मुक़ाबले सूर्य के इतना करीब होने के कारण यह अरबों सालों से सूरज की धधकती आग को सहता आया है। [Presentor:] Mercury एक अजीब और रहस्यों से भरी हुई दुनिया है। यह अपने अंडाकार कक्षा या orbit के कारण कभी सूरज के सिर्फ 4 करोड़ 60 लाख किलोमीटर पास होता है तो कभी इससे 7 करोड़ किलोमीटर दूर। इसका मतलब यह है की यहा की दोपहर का तापमान 430O C तक जा सकता है । लेकिन रात मे इस छोटे ग्रह का तापमान, atmosphere न होने की वजह से -170O C तक गिर सकता है। सूर्य और Mercury के बीच एक खास रिश्ता है। जिसे 3/2 orbit to rotation resonance कहते है; इसके कारण Mercury, सूर्य के इर्दगिर्द अपने हर हो चक्करों के दौरान पूरे तीन बार अपनी axis पर घूमता है; जिसका मतलब यह है की यहा का एक दिन हमारे एक साल से दोगुना लंबा होता है। इसका अर्थ यह है की यदि आप इसकी सतह पर 3 km/hr की रफ्तार से चलते रहे तो भी आप के सूरज आसमान मे हमेशा एक ही जगह पर दिखता रहेगा; अगर आप शाम के समय इसकी सतह पर 3 km/hr की गति से टहलते है तो आप की शाम कभी खत्म ही नही होगी। सूर्य के सबसे करीब के चार ग्रहों मे से, Mercury की पथरीली सतह पर सबसे कम खोजबीन की गई है। क्यूकी अंडाकार कक्षा वाले इस ग्रह तक पाहुचना जो सूरज के इतना करीब है ; एक बहुत बड़ी चुनौती है।
[ NASA's footage of Mercury Mission lift off ]
Mercury तक सीधा पहोचना नामुमकिन है ; क्योंकि वहा तक जाने ले किसी Spacecraft की रफ्तार इतनी ज्यादा होगी की उसे Mercury तक पहुचने के बाद ; अपनी रफ्तार धीमी कर के उसकी कक्षा मे प्रवेश करने के लिए ढेर सारी fuel की ज़रूरत पड़ेगी । NASA का spacecraft Messenger एक ग्रह से दूसरे ग्रह होता हुआ और उनकी gravity की सहायता से अपनी रफ्तार कम करता हुआ Mercury तक पहुचने मे कामयाब हुआ। इसके बावजूद, Messenger की रफ्तार इतनी ज्यादा थी की यह मजबूरन इसे Mercury के पार जाना पड़ा । ऐसा उसे तीन बार करना पड़ा हर बार यह अपनी रफ्तार कम करते हुए ; करीब 7 साल तक शानदार तरीके से सूर्य का चक्कर लगते हुए वो आखिरकार Mercury के इर्दगिर्द की अपनी निर्धारित कक्षा मे सही सलामत पहुचने मे कामयाब हुआ, और हमारे सुयर्यमंडल के इस सबसे छोटे और सबसे ज्यादा गड्ढो से भरे इस रहाशयमी दुनिया की खोजबीन करने मे जुट गया। Messenger ने Mercury की सतह का नक्शा बनाने का अपना काम शुरू किया, और हमारे सामने इसके रहाशयों को बड़ी ही बारीकी से पेश किया। Mercury की सतह की तस्वीरे लेने के अलावा भी इसने बहुत कुछ किया; Spacecraft से आने वाले signals को track कर के Mercury के orbital path मे आने वाले मामूली बदलावों का पता लगाया गया; जिससे हम Mercury के gravitational field को समझ पाए। इसपर ऐसे instruments भी थे जिनके कारण हम Mercury के अपनी axis पर घूमते हुए डगमगाने को देख सकते थे। Messenger के सभी instruments के data को जोड़ कर हमने इस planet का एक computer model बनाया जिससे अब हम इस ग्रह के crosssection को अलग कर के देख सकते थे ; जब हमने ऐसा किया तो कुछ बहुत अजीब चीज़ सामने आई ; Mercury का core उसके केंद्र से उसकी सतह तक करीब 85% बाहर निकाल हुआ है। जैसे लगभग पूरा का पूरा core ही Mercury की सतह पर नज़र आ रहा है। इसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है की जैसे बीते काल मे किसी ने इसकी सतह से चट्टानों को तोड़ कर फेंक दिया हो। सिर्फ इतना ही नही उस छोटे से space probe को Mercury पर कुछ ऐसे chemicals मिले जिनके सूरज के इतने करीब मिलने की कल्पना किसी ने नही की थी।
Presentor:
Mercury की सतह पर sulphur और potassium जैसे elements का काफी बड़ी मात्रा मे मिलना एक बहुत ही अचरज की बात थी ; अगर हम उस वक्त का विचार करे जब ग्रह बन रहे थे। सूरज के इतने करीब जहा आज Mercury है इन chemicals का इतनी बड़ी मात्रा मे मिलना नामुमकिन था ; क्यूकी, यह elements यहा के गरम हालात मे जल्द ही बदल कर भाप मे परिवर्तित हो जाते है। इसलिए यह बड़ी मात्रा मे solar system के केवल बाहरी ठंडे इलाक़ो मे पाए मे मिलते है ; इन elements का Mercury पर पाया जाना एक तरीके से एक पहेली है। इसने और इस तरीके की दूसरी खोजों ने ग्रहों के बनने की हमारी पहले की theories पर पुनर्विचार करने पर हमे मजबूर कर दिया है। अपने बनने के लाखों साल बाद भी Mercury अपने बनने के समय की अपनी गति से टहल रहा था। धीरे-धीरे बाकी ग्रहों की तरह यह भी ठंडा हुआ और इसकी सतह बनी। वक्त के साथ-साथ, Mercury के अंदर से निकालने वाले volatile यानि अस्थिर materials ने इसके सतह को काफी उपजाऊ बना दिया। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता था जब Mercury का जन्म अपनी जगह पर नही बल्कि सूरज से बहुत दूर हुआ होता। अब वैज्ञानिको का यह मानना है की Mercury का जन्म सूर्य से शायद 17 करोड़ किलोमीटर दूर कही दूसरी जगह पर हुआ होगा ; मंगल की कक्षा के आसपास। जहा अगर आज यह रहता तो इसके हालात कुछ अलग होते ; लेकिन ऐसा नही होने वाला था। इसके पूरी तरह से बड़ा बनने से पहले ही घाटी कुछ घटनाओं ने इसे अपनी असली जगह से हटना दिया। रात के आसमान मे नज़र आने वाले चमकतें हुए ग्रह हमेशा एक सी ही गति पर चलते है। ऐसा लगता है की यह अपनी चाल कभी नही बदलते ; हम गणित की सहायता से भविष्य मे कहा हो सकते है या बीते काल मे यह कहा थे इसका पता लगा सकते है ; पर असल मे ऐसा नही है, यह ग्रह भी परिवर्तनशील है । आज का सूर्यमण्डल काफी स्थिर और सुलझा हुआ है इसलिए आज ग्रहों के बदलने की गति बहुत धीमी हो गई है । करीब करीब इतना की हम कह सकते है की जैसे यह अपनी चाल मे बिलकुल स्थिर है। पर शुरुआती सौर्यमण्डल मे ऐसा नही था ; यहा काफी उथलपुथल थी। यहा बहुत सारे ग्रह थे जो एक दूसरे से टकरा रहे थे कुछ दुनियाँए मिट रही थी कुछ नयी बन रही थी। ग्रहों का एक दूसरे पर काफी ध्वंसकारी प्रभाव था। बड़े ग्रह या तो छोटे ग्रहों को निगल लेते थे या उन्हे उनकी मूल कक्षा के बाहर फेंक देते है। हमे Mercury की सतह पर जो chemicals मिले है और उसे core का अपने आकार के लिहाज से इतना बड़ा होना यह दर्शाता है की इसके साथ कुछ ऐसा हुआ होगा:
Mercury ने अपने जीवन की शुरुआत सूरज से 17 करोड़ दूर की होगी; यानि यह भी उसी जगह के आसपास था जहा मंगल भी जन्म ले रहा था। यह इलाक़ा ढेर सारे छोटे-छोटे ग्रहों से भरा हुआ था ; जो अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे। यहा काफी अफरातफरी थी, इसी अफरातफरी मे से कोई बड़ी चीज आ कर टकराई और इसे सूरज की ओर धकेल दिया। Mercury एक बहुत ही छोटे ग्रह से टकराया होगा ; पर यह एक जबर्दस्त टक्कर रही होगी जिसने इसके सतह के ज़्यादातर हिस्से को तोड़ कर space मे फेंक दिया होगा। जिससे काफी सारे मलबा पीछे रह गया होगा। शायद इस मलबे से शुरुआती venus को बनने मे मदद मिली होगी। अगर यह बात सही है तो Mercury जो एक planet के core से थोड़ा ही बड़ा था। सूरज की ओर बढ़ने लगा होगा और आखिर मे जा कर अपने आज के इस अंडाकार कक्षा या orbit मे settle हो गया होगा। यह बात की इस टक्कर से Mercury की ज़्यादातर बाहरी परत उड़ गई होगी कुछ हद तक सही प्रतीत होती है। लेकिन इस theory मे भी एक गड़बड़ी है ; इतनी ज़बरदस्त टक्कर से किसी planet को काफी गर्म हो जाना चाहिए। जिसके परिणाम स्वरूप Mercury पर मिले उन chemicals को भाप बन का उड़ जाना चाहिए था जो इसके सतह पर मिले। इसलिए अगर हम इस theory को सही मानते है तो यह टक्कर बड़ी ही खास प्रकार की रही होगी जिससे केवल इसका बाहरी परत इससे अलग हुआ पर यह इतना गरम नही हुआ की वे chemicals evaporate हो पते या शायद इसकी बजाय बहुत सारी छोटी-छोटी टककारे हुई होगी जिससे हम इस टक्कर वाली theory को सही कह सके। Mercury के बनने की कहानी के अभी भी कई पहलू समझने बाकी है ; यह कहना गलत नही होगा की Mercury की यह कहानी आज विज्ञान की अनसुलझी पहेलियों मे से एक है। चार साल तक Mercury के रहाशयों की पड़ताल करने और इसके अफरातफरी से भरे इतिहास के बारे मे इशारा करने के बाद Messenger probe का ईंधन खत्म हो गया और उसने भी इस गड्ढो से भरे इस दुनिया की सतह से टकरा कर एक और गड्ढा बना दिया ।
Mercury आज सूर्य की धधकती हुई भट्टी मे जल रही एक बंजर और बेजान दुनिया नज़र आती है ; जिसमे बहुत सारे गड्ढे है। पर Messenger द्वारा इसके इतिहास की एक झलक मिलने हमे मालूम पड़ा की इसकी कहानी बस इतनी नहीं है। इसका इतिहास बहुत उथल-पुथल और अफरातफरी से भरा हुआ था। और शायद अगर एक टक्कर न हुई होती तो इसका इतिहास कुछ अलग होता। और कौन जनता है? शायद धरती की तरह ईसपे भी जीवन हो सकता था। आप की क्या राय है? हमे comments मे ज़रूर बताए। धन्यवाद।